प्रारंभिक जीवन
डॉक्टर दीपक कुमार सेन का जन्म 15 मार्च 1950 को हुआ।
उनके पिता स्वर्गीय हरेंद्र नाथ सेन स्वतंत्रता सेनानी थे। वे हजारीबाग जेल में कैद भी रहे और वहीं से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की थी। जेल से छूटने के बाद उन्होंने प्रशासनिक सेवा में कार्य किया। सौभाग्य और गर्व की बात है कि वे शहीद मास्टर दा सूर्य सेन के बंशज है।उनकी माता स्वर्गीय बिजन सेन प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका थीं।
परिवार में एक भाई और दो बहनें थीं। सबसे बड़े दीपक कुमार सेन थे, जिनके बाद उनकी दो छोटी बहनें थीं।
उच्च शिक्षा और शैक्षणिक करियर
1974 में उन्हें यूजीसी फैलोशिप प्राप्त हुई और इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स (आईएसएम), धनबाद में पीएच.डी. हेतु प्रवेश मिला।
1979 में धनबाद के आर.एस. मोड़, गोविंदपुर कॉलेज में विज्ञान संकाय की स्थापना के समय वे गणित विभाग के संस्थापक व्याख्याता बने और विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए।
1981 में उन्होंने पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की और “डॉ. दीपक कुमार सेन” कहलाए।
उन्होंने ग्रामीण छात्रों को विज्ञान पढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया। उनके प्रयास से बड़ी संख्या में ग्रामीण विद्यार्थी गणित और विज्ञान की पढ़ाई करने लगे।
पारिवारिक जीवन
डॉ. सेन ने गोविंदपुर कॉलेज की दर्शनशास्त्र की व्याख्याता प्रोफेसर अर्चना सिन्हा से विवाह किया। वे कॉलेज की प्रथम महिला व्याख्याता थीं। उनके प्रयास से बड़ी संख्या में छात्राओं ने कॉलेज में प्रवेश लिया। पति-पत्नी ने मिलकर कॉलेज को उन्नति की दिशा दी।
साहित्यिक और शैक्षणिक योगदान
डॉ. सेन गणितज्ञ होने के साथ-साथ साहित्यकार भी थे।
1977 में उन्होंने “अनन्या” नामक बांग्ला त्रैमासिक पत्रिका की शुरुआत की। यह आज भी भारत सरकार से पंजीकृत शोध पत्रिका के रूप में प्रकाशित हो रही है।
यह झारखंड से प्रकाशित होने वाली एकमात्र पंजीकृत बांग्ला पत्रिका है।
उन्होंने गणित विषय पर मैट्रिक से लेकर स्नातक स्तर तक की अनेक पुस्तकें लिखीं, जिन्हें भारती भवन ने प्रकाशित किया। इन पुस्तकों ने छात्रों को सरल और रोचक ढंग से गणित पढ़ने के लिए प्रेरित किया।
उनके शोध लेख देश-विदेश की प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।
अनेक शोधार्थियों ने उनके मार्गदर्शन में पीएच.डी. पूरी की।
सामाजिक और सांस्कृतिक कार्य
सेवानिवृत्ति के बाद डॉ. सेन सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यों में सक्रिय हो गए।
वे धनबाद के ऐतिहासिक लिंडसे क्लब के सचिव बने और वहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते रहे।
उन्होंने झारखंड में लिटिल मैगज़ीन मेला की शुरुआत की। उनके नेतृत्व में धनबाद में चार और जामताड़ा में दो मेले आयोजित हुए।
“शिल्पे अनन्या” के बैनर तले प्रत्येक माह सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते रहे, जिनमें झारखंड और बंगाल के बुद्धिजीवी भाग लेते थे।
लघु पत्रिका सम्मेलन भी उनके नेतृत्व में आयोजित हुए, जो तीन दिनों तक चलते थे और जिनमें भाषाओं के समन्वय व विकास जैसे मुद्दों पर चर्चा होती थी।
वैज्ञानिक चेतना और सामाजिक सरोकार
डॉ. सेन भारत ज्ञान विज्ञान समिति के झारखंड इकाई की वैज्ञानिक चेतना उपसमिति के अध्यक्ष बने। वे निरंतर गाँव-गाँव जाकर वैज्ञानिक सोच और शिक्षा का प्रचार करते रहे।
👉 इस प्रकार प्रो. डॉ. दीपक कुमार सेन ने न केवल गणित और विज्ञान शिक्षा में योगदान दिया, बल्कि साहित्य, संस्कृति और समाज सेवा में भी अमिट छाप छोड़ी।



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