Janardan Goswami

Janardhan Goswami

लेखक/कवि परिचय

पूरा नाम: जनार्दन गोस्वामी


जनार्दन गोस्वामी ‘व्यथित्’ जी का जन्म झारखंड राज्य के ‘माराफरी‘ नामक गांव में सन् 2 जनवरी 1936 को हुआ था । ये  माराफरी गांव वही है, जहाँ एशिया का सबसे बड़ा स्टील प्लांट अर्थात् बोकारो स्टील प्लांट बनाया गया । प्लांट बनाने के लिए लोगों को गाँव से विस्थापित् करवाया गया । ये गाँव उस वक्त अविभाजित बिहार राज्य  का हिस्सा  तथा हजारीबाग जिले के अन्तर्गत आता था । इनकी माँ का नाम स्व. गेंदा देवी तथा पिता का स्व. पूरन चन्द्र गोस्वामी  ( पूर्ण चन्द्र गोस्वामी) उर्फ पूरन गोस्वामी था । ये अपने समय में जाने माने गायक एवं सितार वादक तथा क्षेत्र में कोकिल कंठी के नाम से ख्यातिलब्ध थे । ब्यथित जी का  प्रारम्भिक जीवन बहुत ही कष्टदायक और संघर्षरत रहा । 1954 ई0 में इन्होंने मैट्रिक की  परीक्षा कसमार हाई स्कूल से उत्तीर्ण किये , तथा हजारीबाग  (अभी बोकारो ) जिला में  प्रथम स्थान पर रहे। इंटरमीडिएट तथा  स्नातक राँची  यूनिवर्सिटी के झरिया स्थित आर . एस . पी. कॉलेज से किया  तथा बाद में बैंकिंग की परीक्षा में उत्तीर्ण हूए । इसी क्रम में लगभग 1956 ई0 को  इनकी शादी  फुलमनी देवी गोस्वामी  जी  से हुई । इनके दो पुत्र एवं दो पुत्री हैं । बड़े बेटे अनिल कुमार गोस्वामी जी जो वर्तमान में खोरठा ‘सहिया’ पत्रिका के संपादक हैं । अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए इन्होंने शिबु टांड़ स्कूल में कुछ दिन शिक्षक के रूप में कार्य  किया । इसके  ठीक कुछ दिन बाद ही महुदा कोलयरी में ओभर मैनी के  काम किये, फिर आगे  सुपरवाइजर के रूप में कार्यरत रहे । शादी के बाद 1956 में ही इनकी नौकरी  पंजाब नेशनल बैंक में हो गई । जहाँ अपनी योग्यता के बल पर ये उत्तरोत्तर पदोन्नति पाते हुए, सीनियर मैनेजर के पद से सन् 1996 में सेवा निवृत हूए। समयानुसार व्यथित् जी की उम्र ढलती गयी ।  हांथ कांपना शुरू हो चुका था, सुनने की शक्ति धीरे – धीरे कम होते जा रही थी  । पर लिखने की अभिलाषा टुटी नही थी । अपनी मधुमेह और रक्तचाप बीमारी के कारण तबियत दिन ब दिन बिगड़ता गया। इनकी भार्या हमेशा की तरह इनके आंतरिक मनोबल को बढ़ाती रही । पर होनी को कौन टाल सकता है अर्थात इनकी भार्या  श्रीमती फूलमनी देवी गोस्वामी का निधन हो गया । इनके  ठीक  छह महिने बाद 29 जून 2019 को  व्यथित् जी खोरठा, माय, माटी और सांसारिक जीवन  से छुटकारा लेकर  पंचतत्व में विलिन हो गये । 

पंजाब नेशनल बैंक से रिटायरमेंट  के बाद ही इनके छोटे बेटे की इच्छा थी की ‘ब्यथित’ जी ट्रांसपोर्ट का बिजनेस करें , ट्रक खरीदें । उन्होंने अपने बड़े  बेटे से इस विषय में बातचीत कर सलाह लिया । अनिल बाबु ने बिजनेस करने के  लिए सख्त  मना कर दिया। व्यथित् जी ने प्रारंभिक जीवन शिक्षण कार्य से शुरू किया था इनकी अभिरूचि साहित्य में शुरू से थी । इनका जीवन के प्रारंभिक काल से ही अपनी माय, माटी, मातृभाषा से  अटुट प्रेम रहा । हिन्दी भाषा में गीत, कविता, निबंध और कई विधाओं में लिखते रहे थे। लेकिन समय के अभाव में किसी भी रचना को प्रकाशित  न कर पाये । इनके बेटे अनिल गोस्वामी प्रारंभ से ही सुप्रसिद्ध खोरठा साहित्यकार डॉ0 ए0 के0 झा के संपर्क में रह रहे थे  । बांधगोड़ा  पहला कार्यशाला जिसमें वे शामिल हुए थे । और अपने पिताजी  जनार्दन गोस्वामी जी को अपनी माय कोरवा खोरठा भाषा में लिखने की सलाह दी । खोरठा व्याकरण के  बारे में समझाये। अंततः  व्यथित् जी अपनी खुशहाल जीवन को संवारने के लिए नये क्षेत्र की तलाश कर ही लिये और वो था साहित्य । दरअसल इनकी मातृभाषा खोरठा  है इसलिए खोरठा लेखन में उन्मुख हुये । 1995 में इन्ही के गांव बालीडीह  पर ‘खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद्’ का पहला अधिवेशन हुआ , जिससे प्रभावित होकर खोरठा के अनेक साहित्यकारों से परिचित हुए । तभी उनके बेटे ने   ‘लुआठी’ पत्रिका के संपादक  गिरीधारी गोस्वामी  ‘आकाश खूंटी’ जी का साथ  पकड़ा दिया । आकाश खूंटी जी ने खोरठा लेखन की ओर प्रेरित करते रहे और बराबर सम्पर्क में बने  । साथ ही जब  ‘लुआठी’ पत्रिका की शुरूआत हुई तो ब्यथित जी को संरक्षक बनाया गया । पत्रिका का नामकरण ‘लुआठी’ ब्यथित जी का ही किया हुआ है ।  आकाश खूंटी जी ने ही डाॅ0 ए0 के0 झा जी से मिलवाये । खोरठा साहित्यकार शिवनाथ प्रमाणिक जी बाल्यावस्था में व्यथित् जी के शिष्य रह चुके थे । उन से भी भेंट मुलाकात करवाए और वही से ब्यथित जी की खोरठा लेखन यात्रा शुरू हुई । कहा जाय तो सेवानिवृत्त होने के बाद  अपने जीवन की दुसरी पारी लेखन में खेली । इनकी कलम लगातार चलती ही रही । इनकी पहली रचना खोरठा कविता ‘काहे गीदर कांदे’ जो तितकी पत्रिका में नवम्बर 1998 में प्रकाशित हुई ।


व्यथित् जी का रचना संसार ◈

  1. अपनी कलम की धारा लगातार प्रवाहित करने  के बाद इनकी पहली पुस्तक ‘माराफरी‘ खंड काव्य के रूप में 2000 ई0 को प्रकाशित हुई ।  जो अपनी मातृभूमि ‘माराफरी ‘ (बोकारो) को केन्द्रीय मान कर लिखी गई है ।
  2. व्यथित् जी ने बोकारो स्टील प्लांट के विस्थापन  पुर्व सामाजिक  – सांस्कृतिक इतिहास को खोरठा काव्य में लिख कर अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया है । आज बोकारो स्टील प्लांट के लगने से अनेकों  गांव अस्तित्व विहिन हो चुका है । बोकारो के विस्थापित गांवो को साहित्यिक शोभा बढ़ाने के लिए इन्होंने ‘उजरल खोंधा’ नामक संस्मरण 2013 में छपी ।
  3. आश्चर्य की बात यह है की, ब्यथित ने इसे नाटक भी लिखें  जो अप्रकाशित है । अभी तक खोरठा में  नौ पुस्तक प्रकाशित हुई है – माराफरी (खंड काव्य) सेंवातिक बुंद , ढेव , मंजरी , लोर (कविता संग्रह) , हिलोर (गीत संग्रह) खटरस (कहानी संग्रह ) चांदिक जुता (हास्य-व्यंग्य) और उजरल खोंधा(संस्मरण) है । ब्यथित जी की अंतिम रचना  ‘मंजरी‘ खोरठा कविता संग्रह है । वैसे तो इनकी  रचना अभी भी  पांडुलिपि में है जो अप्रकाशित है- पराधीन , मंगलवती (उपन्यास), उजरल खोंधा (नाटक), बूढ़ा बूढ़ी, लेभागा  (एकांकी), माटिक मेढ़ , झरोखा (संस्मरण) मातालेक किरिया (प्रहसन) उड़ान (यात्रा- बितांत ) अस्टकमल , चोला (कहानी संग्रह) जे कहबो से सच (लम्बी कहानी) , दिवाना , काकी नामा (व्यंग्य काव्य ), बिरहनला (प्रबंध काव्य ),  अबोध बोध (कविता संग्रह), मैथिलीशरण गुप्त के ‘पंचवटी’ काव्य का खोरठानुवाद एवं अनेक लोककथा संग्रह पाये गये हैं  ।

व्यथित् जी के सम्मान ◈

खोरठा साहित्य की अपार सेवा के लिए खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद् की ओर से ‘माराफरी’ (खण्ड काव्य) के लिए 2001 में  इन्हें ‘श्रीनिवास पानुरी स्मृति सम्मान’ और झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा रांची की ओर से 2007 में  खोरठा का पहला ‘अखड़ा सम्मान’ दिया गया । 


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